Monday, April 25, 2011

एक थी शिप्रा ...उज्जैन शहर में ...


युवा किसी भी देश, प्रदेश , स्थान या परिवार की रीढ़ और भविष्य होते हैं .
आज के युवा करियर की अंधी दौड़ में जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को भूलता जा रहा है .
आज एक ऐसी ही आयाम को लिया है इस लेख में ....

मैंने शिप्रा के तट को देखा है , साफ़ और पानी से भरा हुआ , राम घाट हो या विक्रांत भैरव या मंगलनाथ! पता नहीं इस नगरी के आध्यात्म का भौतिक दोहन करते हुए इसकी आत्मा -शिप्रा- को लोगों ने क्यूँ मिटा दिया.

भारत के वर्ल्ड कप जीतने के बाद टावर चौराहे और फ्रीगंज में जमा हुए उन हज़ारों युवाओं में से यदि १०% भी शिप्रा के साथ सहानुभूति जताएं तो ये नदी पुन: जीवित हो उठेगी , गंभीर के जमा पानी से नहीं स्वयं के शुद्ध, निर्मल और पावन बहते हुए जल से !

जो नदी खुद मर रही हो वो कैसे जीवन दान दे पायेगी , जो रोजाना मैली हो रही है कैसी पापों को धो पायेगी .....
जो बातें ऊपर लिखी हैं बिलकुल भी नई नहीं हैं पर कोई भी उसे समझना ही नहीं चाहता ....

कोई व्यक्तिगत या सामूहिक पहल ही नहीं कर रहा , क्या इतने मृत है लोग महाकाल की नगरी में ....

उज्जैन.कॉम आह्वान करता है की आने वाली बारिश के पहले हम युवा, सभी जागरूक नागरिक जो आत्मिक और वैचारिक रूप से जीवित हैं , पुण्य सलिला शिप्रा के लिए कुछ करे और एक बार नहीं बार बार लगातार करते ही रहें. ......
कुछ बिंदु :
- साफ़ -सफाई हेतु कारगर योजनायें
- पूजन सामग्री नदी में ना डालने हेतु अभियान
- पौलिथिन रहित ज़ोन
- त्योहारों पर विशेष वालेंटीयर्स
- विशेष एजुकेशनल फिल्म्स फॉर शिप्रा कंजर्वेशन

आपके उत्तर की अपेक्षा में
समीर शर्मा -
sameer.sharma@ds-india.com | www.ujjain.com